शारदीय नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री देवी की पूजा की जाती है, माँ शैलपुत्री दुर्गा के नौ रूप में प्रथम स्वरूप में जानी जाती हैं, देवी शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। धार्मिक मान्यता के अनुसार देवताओं और राक्षसों के बीच पहला महासंग्राम हुआ, तब माँ दुर्गा ने शैलपुत्री रूप में असुरों का नाश किया था। माँ शैलपुत्री को साहस, स्थिरता और सौभाग्य की देवी माना जाता है।
पूजा की विधि
सुबह स्नान करके साफ वस्त्र पहनें और घर के पूजा स्थान को स्वच्छ करके वहाँ घट स्थापना करें। माँ शैलपुत्री के सामने घी का दीपक जलाएं, माता को गुड़हल या गुलाब के फूल अर्पित करें। धूप, दीप, चंदन, रोली, सिंदूर, नारियल, फल और मिठाई चढ़ाकर पूरी श्रद्धा से पूजा करें। अपनी इच्छाएं माँ के सामने रखें और उनका आशीर्वाद माँगें। पूजा के समय माँ का मंत्र “ॐ शं शैलपुत्र्यै फट्” कम से कम 108 बार जपें। फिर आरती करें और भोग लगाए।
माँ शैलपुत्री का मंत्र जाप
लाल आसन पर बैठकर हाथ में लाल फूल लें और इस मंत्र का जाप करे, मंत्र जाप के बाद फूल माँ को अर्पित करें।
मंत्र – वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
भोग और प्रसाद
मां शैलपुत्री को गाय के घी से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है। आप उन्हें घी से बनी मिठाई या हलवा अर्पित कर सकते, सफेद मिठाइयाँ और सफेद रंग के फूल भी माँ को चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है।
पूजा के बाद माँ शैलपुत्री की कथा, दुर्गा चालीसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती का पाठ करेंऔर देवी माँ से सच्चे मन से प्रार्थना करे।
इस प्रकार श्रद्धा और विधिपूर्वक की गई माँ शैलपुत्री की पूजा से भक्तों को मानसिक शांति, सुख-समृद्धि और आत्मबल की प्राप्ति होती है

