हिमांशु मांडले हत्याकांड में बड़ा फैसला: हाईकोर्ट ने पांचों आरोपियों को किया बरी, रिहाई का आदेश

बिलासपुर/बालोद। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में 2020 में हुए बहुचर्चित हिमांशु मांडले हत्याकांड में उच्च न्यायालय, बिलासपुर ने एक अहम निर्णय सुनाते हुए मामले के सभी पाँचों आरोपियों को दोषमुक्त कर रिहा करने का आदेश दिया है। यह फैसला 6 नवंबर 2025 को सुनाया गया। इससे पहले जिला एवं सत्र न्यायालय, बालोद ने सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी।

क्या था मामला?

21 दिसंबर 2020 की सुबह तांदुला जलाशय किनारे व्यायाम शिक्षक हिमांशु मांडले का शव बरामद हुआ था। उसके सिर पर भारी पत्थर से प्रहार के निशान पाए गए थे। घटनास्थल पर खून के निशान मिले थे। मामला हत्या का होने के बाद बालोद पुलिस ने फॉरेंसिक टीम, साइबर सेल और डॉग स्क्वॉड की मदद से जांच शुरू की थी।

पुलिस ने मात्र 48 घंटे में हत्या का खुलासा करने का दावा किया। पुलिस विवेचना के अनुसार, मृतक की पत्नी माधुरी मांडले और डांस टीचर लोकेंद्र पटेल के बीच अवैध संबंध थे। पुलिस का आरोप था कि दोनों ने हिमांशु को रास्ते से हटाने की साजिश रची और रायपुर से लोकेंद्र पटेल के तीन साथियों को बुलाकर वारदात को अंजाम दिलाया। आरोप यह भी था कि हत्या के लिए उन साथियों को ₹1000 अग्रिम दिए गए थे।

निचली अदालत ने सुनाई थी उम्रकैद

साक्ष्यों और गवाहियों के आधार पर जिला एवं सत्र न्यायालय बालोद ने पाँचों आरोपियों —

  • माधुरी मांडले

  • लोकेंद्र पटेल

  • और रायपुर के तीन सहयोगी आरोपियों

को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी। इसके खिलाफ सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी।

हाईकोर्ट ने बदला फैसला

अपीलों पर सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय, बिलासपुर ने निचली अदालत का निर्णय पलटते हुए सभी आरोपियों को शक का लाभ देते हुए निर्दोष घोषित किया और तत्काल रिहाई का आदेश दिया।इस मामले में आरोपी गोविंद सोनी उर्फ कालू और कृष्णकांत शर्मा की ओर से पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता डॉली अभिषेक सोनी (जबलपुर हाईकोर्ट) ने की।

“जल्दबाजी में फंसाया गया” – बचाव पक्ष

वरिष्ठ अधिवक्ता डॉली अभिषेक सोनी ने हाईकोर्ट के फैसले को न्याय की जीत बताते हुए कहा:

“मेरे मुवक्किलों को झूठा फँसाया गया था। पुलिस ने सिर्फ 48 घंटे में मामले का खुलासा करने की जल्दबाजी में अधूरी और एकतरफा जांच की। बिना ठोस सबूत के आरोपियों को गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सज़ा दिलवाई गई थी।”

उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के इस फैसले ने पुलिस विवेचना पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

पुलिस जांच पर उठे सवाल

हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब पुलिस की शुरुआती जांच, साक्ष्यों के संग्रह और आरोप सिद्ध करने की प्रक्रिया को लेकर अधिवक्ता और कानूनी विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं। विशेष रूप से—क्या पुलिस ने पहले से तय निष्कर्ष के आधार पर जांच की?क्या स्वतंत्र, वैज्ञानिक और निष्पक्ष जांच की गई थी?क्या मात्र “जल्द केस सॉल्व करने” के दबाव में गलत दिशा में जांच हुई?इस फैसले के बाद संभावना जताई जा रही है कि राज्य स्तर पर केस की जांच प्रक्रिया की पुन: समीक्षा की मांग भी उठ सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *