जगदलपुर। आत्मसमर्पण के बाद नक्सल संगठन में भारी नाराज़गी देखने को मिल रही है। संगठन ने अपने पूर्व केंद्रीय कमेटी सदस्य कामरेड चंद्रन्ना पर “झूठा प्रचार” और “विश्वासघात” का आरोप लगाते हुए एक तीखी विज्ञप्ति जारी की है। यह विज्ञप्ति ओडिशा राज्य कमिटी के अधिकार प्रतिनिधि गणेश की ओर से जारी की गई है। गणेश ने कहा है कि हाल ही में फोर्स के एंटी नक्सल ऑपरेशन के कारण संगठन पर दबाव बढ़ गया है। उन्होंने स्वीकार किया कि मौजूदा परिस्थितियों में केंद्रीय कमेटी की बैठक आयोजित करना संभव नहीं हो पा रहा है।
चंद्रन्ना के बयानों पर नाराज़ नक्सली
गणेश ने जारी विज्ञप्ति में चंद्रन्ना के उस बयान को सिरे से खारिज किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि “कॉमरेड देवजी को संगठन का महासचिव चुना गया है।” नक्सल संगठन ने इस बयान को “पूरी तरह गलत और भ्रामक” बताते हुए कहा कि चंद्रन्ना अब संगठन का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए उन्हें इस तरह का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है।विज्ञप्ति में कहा गया है कि “आत्मसमर्पण के बाद चंद्रन्ना ने संगठन को बदनाम करने की साजिश की है। उन्होंने कपटपूर्ण और झूठे बयान देकर जनांदोलन की विचारधारा को नुकसान पहुंचाया है।”
28 अक्टूबर को किया था आत्मसमर्पण
गौरतलब है कि 28 अक्टूबर को चंद्रन्ना ने हैदराबाद में आत्मसमर्पण किया था। वह नक्सल संगठन की केंद्रीय कमेटी के सदस्य और तेलंगाना राज्य कमिटी के सचिव थे। आत्मसमर्पण के दौरान उन्होंने पुलिस अधिकारियों के सामने “लाल सलाम” का नारा लगाते हुए खुद को अब “मुख्यधारा में लौटने वाला क्रांतिकारी” बताया था।लेकिन अब संगठन ने उनके इस आत्मसमर्पण को “ढकोसला” और “नाटकीय प्रदर्शन” करार दिया है। नक्सलियों ने कहा कि जो व्यक्ति संगठन से मुंह मोड़ चुका है, उसे “क्रांतिकारी कहने का कोई अधिकार नहीं” है।
फोर्स की बढ़ती कार्रवाई से बौखलाहट
विज्ञप्ति में यह भी स्वीकार किया गया कि हाल के दिनों में फोर्स की एंटी नक्सल कार्रवाई ने संगठन की गतिविधियों को प्रभावित किया है। कई क्षेत्रों में केंद्रीय और राज्य कमेटी के बीच संपर्क टूट गया है, जिससे संगठन के भीतर असंतोष और तनाव की स्थिति बन गई है।गणेश ने अपने बयान में कहा कि “हमारे कई साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार या मार गिराया है, लेकिन हमारी विचारधारा को खत्म नहीं किया जा सकता।”चंद्रन्ना के आत्मसमर्पण के बाद संगठन के अंदर मतभेद और आंतरिक संकट गहराते दिख रहे हैं। जानकारों का मानना है कि यह घटना नक्सल संगठन के भीतर नेतृत्व के संकट और कमजोर होती पकड़ की ओर इशारा करती है।


